10 जुलाई से शुरू होंगे भक्ति के चार माह:चातुर्मास में खान-पान में रखें सावधानी, ग्रंथों का करें पाठ और मंत्र जप के साथ करें दिन की शुरुआत

रविवार, 10 जुलाई को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे देवशयनी एकादशी कहते है। इस तिथि से कार्तिक मास में आने वाली देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। इन दिनों में पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व है। चातुर्मास में ग्रंथों का पाठ करना चाहिए। मंत्र जप और ध्यान के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक चातुर्मास में वर्षा ऋतु का समय रहता है। इन दिनों में सूर्य देव के दर्शन भी बहुत कम होते हैं। धूप नहीं निकलती है। ऐसी स्थिति में हमारी पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इन दिनों में तामसिक भोजन न करें। मसालेदार, अधिक तैल वाले भोजन से बचना चाहिए। कुछ लोग इन दिनों में लहसुन और प्याज भी छोड़ देते हैं।

इन चार महीनों में रामायण, गीता और भागवत पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों को पढ़ना चाहिए। भगवान विष्णु की कथाएं पढ़नी-सुननी चाहिए। जरूरतमंद लोगों की सेवा करें। इस दौरान भगवान शिव जी की भक्ति का खास माह सावन भी आएगा। सावन माह में व्रत-उपवास और शिव पूजा करनी चाहिए।

ये है चर्तुमास की कथा

पुरी की रथयात्रा:गुंडिचा मंदिर पहुंचे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ; सात दिन यहीं रहेंगे, 10 जुलाई को लौटेंगे

भगवान विष्णु के विश्राम के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार एक बार योगनिद्रा ने कठोर तप करके भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया। योगनिद्रा के सामने विष्णु जी प्रकट हुए। योग निद्रा ने कहा कि प्रभु आपने सभी को अपने शरीर में स्थान दिया है। मुझे भी अपने अंगों में स्थान देने की कृपा करें।

भगवान विष्णु के शरीर में कोई भी ऐसा स्थान नहीं था, जहां वे योगनिद्रा को स्थान दे सके। उनके हाथों में शंख, चक्र, धनुष आदि स्थापित थे, सिर पर मुकुट, कानों में कुण्डल थे, कन्धों पर पीताम्बर, नाभि के नीचे के गरुड़ सुशोभित थे। उस समय विष्णु जी के पास सिर्फ नेत्र ही बचे थे। इसलिए विष्णु जी ने योगनिद्रा को अपने नेत्रों में रहने का स्थान दे दिया। विष्णु जी ने कहा कि तुम चार मास तक मेरे नेत्रों में ही वास करो।

इसके बाद से भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक निद्रा अवस्था में रहते हैं। इसलिए इन चार मासों को चातुर्मास कहा जाता है। ये विष्णु जी के विश्राम का समय रहता है। इस समय वे किसी भी शुभ मांगलिक कर्म में उपस्थित नहीं होते हैं। इस कारण चातुर्मास में विवाह आदि कर्मों के लिए शुभ मुहूर्त नहीं रहते हैं।

Leave a Comment